रविवार, 20 मार्च 2016

पागा कलगी - 6//सूर्यकांत गुप्ता

लइकन रंग मा हें रंगे ( दोहा)
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भारत दाई तोर तो महिमा हवै अपार।
लइकन बर अब्बड़ हवै, मया दया अउ प्यार।।
हँसी खुसी बर तैं भरे, हर दिन अलग तिहार।
कातिक माँ तो रोसनी, होरी माँ रंग डार।।
फागुन मा बाढ़े रथे, ऋतु बसंत के जोस।
बइठे गावत फाग हें, खोवत हें जी होस।।
लइकइ ले प्रहलाद के, बाढ़िस प्रभु संग प्रीत।
ददा फुफू ला तार दिस, धरम के होइस जीत।।
लइकन रंग मा हें रंगे, हरियर पिंवरा रा लाल।
छलकत चेहरा ले खुसी, खेलत रंग गुलाल।।
किल्लत पानी के रथे, एकरो हवै खियाल।
पिचकारी ला छोड़ के, धरे अबीर गुलाल।।
आवैं इन लइका भले, काटैं सबके कान।
लइकन से कुछ सीख लइ, आवन भले सियान।।
होली के गाड़ा गाड़ा बधाई सहित....
जय जोहार....।।
रचनाकार - सूर्यकांत गुप्ता
1009, वार्ड नं. 21 सिंधिया नगर
दुर्ग (छ. ग.)

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