सिक्छा बेटी के
कतिक दिन ले सुते रहू,
अब तो आँखी उघार देव।।
बेटी ल घलो बेटा कस,
सिक्छा संस्कार देव.......।।
अब तो आँखी उघार देव।।
बेटी ल घलो बेटा कस,
सिक्छा संस्कार देव.......।।
भले देस-राज,घर-दुवार,
खेत-खार जतने हे ।
तभो ओखर सपना,
आज घलो सपने हे ।
नई कहि सके मन के गोठ,
आंसू ल अपन पीये हे ।
दबे-दबे आज तक,
बेटी महतारी जीये हे ।।
बिगड़े परिपाटि ल,
झटकुन सुधार देव..........।।
बेटी ल घलो बेटा कस,
सिक्छा संस्कार देव..........।।
खेत-खार जतने हे ।
तभो ओखर सपना,
आज घलो सपने हे ।
नई कहि सके मन के गोठ,
आंसू ल अपन पीये हे ।
दबे-दबे आज तक,
बेटी महतारी जीये हे ।।
बिगड़े परिपाटि ल,
झटकुन सुधार देव..........।।
बेटी ल घलो बेटा कस,
सिक्छा संस्कार देव..........।।
बेटी के हाल आज,
खेती कस होगे हे।
भाय नही कोनो,
बेंच-भांज के सोगे हे।
बिधाता बर सबो,
मनखे बरोबर हे ।
तभो बेटा के आस अतीक,
काबर घरोघर हे?
भेदभाव के गघरी ल,
धरके कचार देव...........||
बेटी ल घलो बेटा कस,
सिक्छा संस्कार देव........||
खेती कस होगे हे।
भाय नही कोनो,
बेंच-भांज के सोगे हे।
बिधाता बर सबो,
मनखे बरोबर हे ।
तभो बेटा के आस अतीक,
काबर घरोघर हे?
भेदभाव के गघरी ल,
धरके कचार देव...........||
बेटी ल घलो बेटा कस,
सिक्छा संस्कार देव........||
लिखहि-पढ़ही ,
तभे आघू बढ़ही ।
त बेटी घलो अपन,
मन के कुछु करही।
लड़ही बिपत अउ,
समाज के बुराई ले।
पढ़ाये बेटी ल,
बिनती हे ददा-दाई ले।
पढाके बेटी ल,
अपन संसो-फिकर ल मार देव.....||
बेटी ल घलो बेटा कस,
सिक्छा संस्कार देव.................||
तभे आघू बढ़ही ।
त बेटी घलो अपन,
मन के कुछु करही।
लड़ही बिपत अउ,
समाज के बुराई ले।
पढ़ाये बेटी ल,
बिनती हे ददा-दाई ले।
पढाके बेटी ल,
अपन संसो-फिकर ल मार देव.....||
बेटी ल घलो बेटा कस,
सिक्छा संस्कार देव.................||
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
9981441795
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें