मंगलवार, 14 जून 2016

पागा कलगी-11//श्रीमती बसन्ती वर्मा

पागा कलगी 11 बर रचना-
कतका सुघर ये गोड़ हाथ
कमल फूल कस आंखी ।
जुग जुग जुगनी पुन्नी के चंदा
बेटी मोर आंखी के पुतरी ।।1।।
सबो संवागा रूप ल देके
बुद्धि ल काबर हर लेहे ।
मां ! आधा बुद्धि मोर ले लेते
अउ बेटी ला थोकिुन दे देते ।।2।।
महूं जी लेतेंव धरती मा
ओहू जी लेतीस धरती मा
हे मां सरस्वती रखबे मान
बेटी ल दे दे बुद्धि के दान ।।3।।
कोनो कइथे थेथेी ओला
कोनो पगली जोजलही
आन बर नून-समुंदर बेटी
फेर इस्कूल कइसे जाही ।।4।।
कोनो जहुंरिया चुंदी नोच के
कोनो कोथ के भागे
जोजहली ए झन खेलव
परोसी के बात सुनाथे ।।5।।
सात बच्छर के मोर दुलौरिन
आंखी म ढारत आसू ।
मोर लक्ठा मा आके बेटी
आंखी म आंखी मिलाथे ।।6।।
अपन भाग के कथा कुंतली
वो बिना कहे कहि जाथे ।
मोर मया आंसू अकरासी
टप-टप टप-टप टपटपाथे ।।7।।
कनी खोरी लूली हकली
इस्कूल सब्बो जाथे ।
गियान के गंगा लहर लहर
लक्ठा म लहर के आथे।।8।।
मोर बेटी बर काबर बैरी
गंगा ह लुकाए हे
कहाॅ खोजंव भागीरथी
जिहा ज्ञान के जोत जलाये हे ।।9।।
जेन दिन बेटी इस्कूल जाही
सब्बो पढ़ाई ल पढ़ लेही
क ख ग ले क्ष त्र ज्ञ तक
1, 2,3 ले 98, 99, 100 तक ।।10।।
त हे मां! मेला बुला लेबे
चाहे धरती ले उठा लेबे
नई तो मोला रहन देबे
बेटी के संग म जियन देबे ।।11।।
मैं हौं रक्षा कवच ओखर
मोर बिना नई जी पाही ।
अतेक बड़े दुनिया मा ओकर
पीरा ल कोन हरही ।।12।।
-श्रीमती बसन्ती वर्मा
एम.आई.जी. 59
नेहरू नगर, बिलासपुर
मो. 9826237370

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें