मंगलवार, 14 जून 2016

पागा कलगी-11//सुनीता "नीतू "

बेटी ह लछमी आय
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बेटी जनम होय हे
सुनके अब झन रो ।
बेटा ले सुग्घर हे बेटी
हिरदे ले महसूस करो ।
फुरफुनंदी कस
खेलहि अंगना म ।
अधिकार ये ओखर,
बेटी ल जीयन दौ ।
बेटा खेलय गुल्ली डंडा
बेटी ल झन रोको ।
फुगड़ी, बिल्लस,
बेटी ल खेलन दौ ।
मानत हँव संगी
जमाना खराब हे,
फेर हर बात म
अतका झन टोको ।
मन मार के
जिहि कइसे ,
अपन मन के ओला,
ओढ़ना पहिनन दौ ।
हाड़ मांस के
पुतरी नोहय ।
कभू तो ,
मन के तोह लौ ।
बेटी हरे घर के
मान सम्मान ।
बेटी ला घला
शिक्षा संस्कार दौ ।
नीतू के सीख हे
बेटी ल मया दौ ।
पीरा हरैया बेटी ल
घर के लछमी समझौ ।
सुनीता "नीतू "

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