गुरुवार, 16 जून 2016

पागा कलगी-12/1/देवेन्द्र कुमार ध्रुव(डीआर)

ऐ मनखे मन पेड़ ला करत हे गोंदा गोंदा
नई देखींन ऐमा रिहिस चिरई के घरौंदा
देखव कईसे दूसर के घर ला उजाड़ के
आदमी मन अपन बर घर बनावत हे
रुख राई कतको परानी के ठउर ठिकाना ऐ
इहिच में कतको ला अपन जिनगी पहाना हे
दुःख के झकोरा म उड़ा जथे ओ खोन्धरा
तिनका चुन चुनके जेकर बर लावत हे
नई सोचिस मिलय ओ पेड़ ले छांव
राहय चिरई मन करे सुघ्घर चीव चाँव
छीनके अइसने दूसरा के रैन बसेरा
आदमी अपन गाँव शहर सजावत हे
आदमी अपने मा रमें काही नई समझय
दूसरा के दुःख पीरा ल कभु नई समझय
भुईया मा चिरई के खोन्धरा छरियाये परे हे
नई देखय कुछु आरी टंगिया भर चलावत हे
नई रही जंगल ता कहाँ रही जंगल के परानी
अऊ रुख राई बिगन नई तो गिरय गा पानी
भूख पियास मा मुश्किल हे जिनगी बचाना
सबला अपन डेरा उजड़े के डर सतावत हे
अरे कोन ऐ चिरई मनके गोहार सुनही
कोन इकर मनके चीख पुकार सुनही
कोन अब इकर मनके बारे मा गुनही
मरगे का जीयत हे नई देखे बर आवत हे
सिरतोन ऐ जिनगी सबबर अनमोल हे
नइहे अबिरथा अपन जगा सबके मोल हे
दूसरा ला मरईया मनखे घलो नई बाचय
आदमी काल ल खुदे अपन बर बलावत हे
अरे खुद बने जीना हे जिनगी बचावव जी
अपन बेरा ल फ़ोकट झन गंवावव जी
आसरा देवव सबो जीव ल पेड़ लगावव जी
देखव इही काम मा हित नजर आवत हे
चिरई चिरगून ला घलो जीयन दो
बेफिकर आसमान मा उड़न दो
दाना पानी राखव इकर बर अंगना म
देखव ताहन कईसे सुघ्घर चहचहावत हे
रचना
देवेन्द्र कुमार ध्रुव(डीआर)
फुटहा करम बेलर
जिला गरियाबंद (छ ग)
9753524905

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