सोमवार, 13 जून 2016

पागा कलगी-11//ज्ञानु मानिकपुरी "दास"

पढ़े लिखे हवे दुनिया, संस्कार ल भुलाय।
बिना संस्कार मनखे, मान कहा ले पाय।
दू अक्षर का पढ़ लेथे, छूटगे शरम लाज।
भुल जथे अपन बिरान, नइये लोक लिहाज।
पढ़े लिखे के संगमा, संस्कार हे जरूरी।
बेटी जग के आधार, बेटी जग क धुरी।
बेटा बेटी मा भेद, अलग अलग हे मान।
आँखी खोलके देखव, दुनो हे एक समान।
बेटा सही ग जानके, दव मोला अधिकार।
महू पढ़ लिखके पावव, शिक्षा अउ संस्कार।
फइले समाज में ब्यार, दूर करी सब आज।
आवव मिलके सब गढ़ी, भेदभाव मुक्त समाज।
पढ़व लिखव आगू बढ़व, जगमा होवय नाम।
संस्कार हर झन भुले, मतकर अइसन काम।
पढ़े लिखे फेर बेटी, रीति ल झन भुलाबे।
सबके तय मान करबे, नीति ल गोठियाबे।
बेटी महतारी पत्नी, हावे अनेक रूप।
सबके तय मान राखे, रिश्ता के अनूरूप।
संस्कार ल झन भूलाय, कतको पाके शिक्षा।
दे दव बेटी ल अइसन, संस्कार के दिक्षा।।
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ज्ञानु मानिकपुरी "दास"
चंदेनी (कवर्धा)
9993240143

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