मंगलवार, 14 जून 2016

पागा कलगी-11//दिनेश देवांगन "दिव्य"

विषय - बेटी ला शिक्षा संस्कार दौ
विधान - घनाक्षरी छंद
तुलसी ये आँगन के, बदरा ये सावन के
बगराही हरियाली, बरखा बहार दौ !
गंगा सही पावन हे, रुप मनभावन हे
मन झन मैल भरौ, पावन विचार दौ !
सुरुज किरण बने, जग ला अंजोर करे
काली घटा बन जम्मो, नहीं अंधियार दौ !
रुपया के चाह नहीं, मया बस मांगथें जी
अपने लुटाके मया, सुघ्घर संसार दौ !
बेटी ला बेटा से कम, कभूँ मत जानिहौ जी
नाम तोरो बगराही, वैसे अधिकार दौ !
गोड मा तो अपनेच, खड़े होके दिखलाही
जीत जाही दुनियाँ ला, ज्ञान के आधार दौ !
आटो रिक्शा ट्रेन बस, सबला चलावत हे
देश ला चलाही ऐसे, शिक्षा संसकार दौ !
दुर्गा काली सीता लक्ष्मी, सबके हे रुप धरे
देखन दौ दुनिया ला, कोख में ना मार दौ !
बेटी ले जहान हावैं, बेटी हा महान हावैं
बेटी ला तो गारी नहीं, मया व दुलार दौ !
कन्यादान ददा दाई, भाई से राखी कलाई
माँगे अधिकार बेटी, ओला अधिकार दौ !
एक बेटी तहूँ दाई, फेर काके करलाई
नाच गाही संग तोरे, खुशियाँ हजार दौ !
खेल अऊ राजनीति, सब मा बढ़े हे बेटी
तोरो बेटी बने तारा, हौसला अपार दौ !
दिनेश देवांगन "दिव्य"
सारंगढ़ जिला - रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
9617880643

2 टिप्‍पणियां:

  1. भाई हे दिनेश जँहा दिव्य हे प्रकाश उहाँ,
    साहित के अँगना ला खूब दमकात हे।
    छंद के आनंद लेत गा के गीत ओज भरे
    मान मंच के तो बने बढ़ावत जात हे।
    बेटी बर प्रकटिन अंतस के भाव उन,
    बार बार पढ़ मन तभो नई अघात हे।।

    दिव्य जी के सुंदर रचना.....

    जवाब देंहटाएं
  2. भाई हे दिनेश जँहा दिव्य हे प्रकाश उहाँ,
    साहित के अँगना ला खूब दमकात हे।
    छंद के आनंद लेत गा के गीत ओज भरे
    मान मंच के तो बने बढ़ावत जात हे।
    बेटी बर प्रकटिन अंतस के भाव उन,
    बार बार पढ़ मन तभो नई अघात हे।।

    दिव्य जी के सुंदर रचना.....

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