गुरुवार, 21 जुलाई 2016

पागा कलगी-14/6/संतोष फरिकार

"मोर ढेकी"
अपन खेती मोर ढेकी ,
तोर मिल के कूटाए चाऊर 
के भात ।
मोर ढेकी के कूटे चाऊर के
पसिया तात ।
तोला सुनावव पड़ोसिन ,
खा के देखबे आज रात ।
छत्तीसगढ़ी बोली कस गुत्तूर ,तै पेट भर खाबे बिना साग ।
चिख तो ले आज रात ।
पहली पसिया पी बोरा उठावय मोर बेटा ,
अब भात खा के कट्टा उठाथे तोर बेटा ।
कहनी नोहय सिरतोन ने ,
नई गोठियावव मय फेकी
गोठ ये मोर खेती मोर ढेकी।
अपन खेत म कभू कमा कभू सूरता ।
अपन ढेकी म कभू कूट कभू सूरता ।
नदागे बेटी अब हमर ढेकी ,
दौड़े दौड़े जाथव मिल कोती।
अबके विष्कार ह हमर पुरखौनी ल दबा दित ,
अब तूहर लइका के सूने बर कहनी होगे,
देखे बर सरकारी संग्रहित होगे ।
तेली के घाना नइये ,
जाता अउ सील लोड़हा कोंटा म लूकागे ।
ढेकी के चाऊर जाता के पिसान ,
सील लोड़हा के चटनी
मथनी के मही ।
जम्मो सिरागे
खाए बर मन तरसगे ।
एकर चारी वोकर चारी
फलफल ओसावथे ,
ढकरस ढकरस ढेकी कूदथे
पसर पसर धान ओइरावथे ।
उपर म डोरी बांध झूलना कस झूलथे ,
चिमनी के अंजोर म तको
कूटावथे ।
हमर कारखाना खेती ,
हमर मिल ढेकी ।
तभो ले हम गरीब ,
संतोषी हमर मन
बेटी हावन सबके करीब ।
अब तै ओइर बेटी धान,
मै चलावव ढेकी
मै चलावव ढेकी ।
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संतोष फरिकार
देवरी भाटापारा
‪#‎ममारू‬

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