सोमवार, 11 जुलाई 2016

पागा कलगी-13 /24/सुखन जोगी

माटी के मितान -
गोहार माटी के
सुन रे बदरा कारी
मोर गोहार हे भारी
तैं जम के बरसा पानी
मोर मितान करही किसानी
झन करबे एसो नदानी
भरपुर देबे रे पानी
बिन पानी चले नई जिनगानी
फेर कईसे होही किसानी
मोर बात के रखले तैं मानी
घटा घनघोर बरखा रानी
माटी ले माटी मिल करथे किसानी
मितान ले करहूं मितानी
नई भुखन मरन दंव नानहे लईका
सुनले खुलन नई दंव मै अकाल के फईका
घोर घोर गिरबे देहे बियासी
झन लेवय मोर मितान कोनहो मेर फांसी
दिन रात तन घुरो पछीना बोहाथे
नई देखय अपन दुख मोर सेवा बजाथे
देहंव मेहनत के फर महूं भरपुर
आबे रे बदरा तहूं लुहुर तुहुर
तहुं करले परमारथ के काम
संग दे मोला मेहनत के देहे म दाम
तोर ले नही त काखर ले गोहरांव
लिही किसनहा भईया तोर नांव
पकोबे बने घन घन ले सोनहा बाली
मितान घर आवय बने खुसहाली
मनावन देबे खुस होके होरी अऊ देवारी
झन परय दुकाल रे बरखा एसो के दारी
® - सुखन जोगी
डोड़की , बिल्हा बिलासपुर
७/७/१६

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें