रविवार, 10 जुलाई 2016

पागा कलगी-13/17/सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

"माटी के मितान"
माटी के मितान घला, हांसत कुलकत आज।
बादर के संग चलेला, नांगर बैला साज।।
***गीत***
माटी के मितान..
मोर संगी किसान।
माटी के मितान..
मोर भैया किसान।
नांगर बैला धरके निकले,
गांव के गली जागे।
बैला के गर मा घंटी बाजे,
खोर हली भली लागे।
आह आह आह काहत काहत,
बैला ल बेड़ के लान..
माटी के मितान,
मोर भैया किसान...
घड़ घड़ बादर गरजे,
चम चम बिजली चमके।
तरतर तरतर चुहे पछीना,
चिखला म चेहरा दमके।
तोर पांव के आरो ल पावत,
पिकियाथे राहेर धान..
माटी के मितान,
मोर संगी किसान...
जांगर टोरत उवत बूड़त,
दुनो बेरा के जुरत ले।
ढसरा मार थिराय नही,
जिनगी के गाड़ी दउड़त ले।
तोर भरोसा गोहार पारत..
जनतंत्र के भाग..
माटी के मितान,
मोर संगी किसान।
माटी के मितान,
मोर भैया किसान।
रचना:---सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर, कवर्धा
9685216602

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