शनिवार, 9 जुलाई 2016

पागा कलगी-13/16/श्रवण साहू

पागा कलगी भाग 13
विषय- माटी के मितान
बर मोर नानकून गीत के प्रयास-
माटी मा मोती उपजईया
भुईया ला सुघर सिरजईया
कहाये नघरिया किसान
तंहि हरस गा तंहि हरस मोर
"माटी के मितान"
(1)
मुड़ ले गोड़ तक पसीना बोहाये
पखरा मा घलाव पानी ओगराये
का घाम अऊ का झड़ी बादर
महतारी के तैहा सेवा बजाये
करमा ददरिया गाके करथस
धरती दाई के बखान
तंहि हरस गा तंहि हरस मोर
"माटी के मितान"
(2)
तोर हाथ के पसीया ला पाथे
माटी घलाव हा महक जाथे
हरियर हरियर धान लहराथे
देखत मन के दुख बिसराथे
भुंई ला बंजर होये ले बचाये
कारज हे तोर महान
तंहि हरस गा तंहि हरस मोर
"माटी के मितान"
(3)
तोर मेहनत अऊ तोर निहोरा
कहाये छत्तीसगढ़ "धान कटोरा"
कब तोर संग फेर नियाव होही
ऊही बेरा के हावे अब अगोरा
अपन करम अऊ धरम के सेती
कहाय भुईया के भगवान
तंहि हरस गा तंहि हरस मोर
"माटी के मितान"
रचना- श्रवण साहू
गांव-बरगा,जिला-बेमेतरा
मो-8085104647/4950

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