रविवार, 10 जुलाई 2016

पागा कलगी-13/23/महेन्द्र देवांगन "माटी"

माटी मोर मितान 
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सुक्खा भुंइया ल हरियर करथंव, मय भारत के किसान 
धरती दाई के सेवा करथंव, माटी मोर मितान ।


बड़े बिहनिया बेरा उवत, सुत के मय ऊठ जाथंव
धरती दाई के पंइया पर के, काम बुता में लग जाथंव


कतको मेहनत करथों मेंहा, नइ लागे जी थकान
धरती दाई के सेवा करथंव, माटी मोर मितान ।


अपन पसीना सींच के मेंहा, खेत में सोना उगाथंव
कतको बंजर भूंइया राहे, फसल मय उपजाथंव 


मोर उगाये अन्न ल खाके, सीमा में रहिथे जवान
धरती दाई के सेवा करथंव , माटी मोर मितान ।


घाम पियास ल सहिके मेंहा, जांगर टोर कमाथंव
अपन मेहनत के फसल ल, दुनिया में बगराथंव 


सबके आसीस मिलथे मोला, कतका करों बखान
धरती दाई के सेवा करथंव, माटी मोर मितान ।


धरती दाई के सेवा करके, अब्बड़ सुख मय पाथंव
कोनों परानी भूख झन मरे, सबला मेंहा खवाथंव


सबके पालन पोसन करथों, मेहनत मोर पहिचान
धरती दाई के सेवा करथंव, माटी मोर मितान ।


रचना
महेन्द्र देवांगन "माटी"
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला -- कबीरधाम
8602407353

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