बुधवार, 20 जुलाई 2016

पागा कलगी-14 /5/ सुखन जोगी

ढेंकी मेर माईलोगन के बसेरा
बिते दिन के गोठ ग
बरय ढिबरी के जोत ग
नई रहय लाईट न चलय मसीन
बेरा उही पुरखा पाहरो के दिन
रात पहावय कंडील के अंजोर
सुरूज निकले होवय भोर
चांउर सिरावथे बांचे हे थोर -मोर
पहिली ले होवथे धान बोरा म जोर - तोर
रहय ढेंकी गांव म दुये - चार
जाय बर सुपा -चरिहा धर होजंय तईयार
ऐ पारा ल ओ पारा जाय म होवय बेरा
समे निकाल दाईमन कुटंय बेरा - कुबेरा
मया - पिरित के गोठ होवय
सबो सुघ्घर जुरमिल के रहंय
अब कहां पाबे जी अइसन बेरा
ढेंकी मेर रहय माईलोगन के बसेरा
रहय ढेंकी जी एक
काम होवय अनेंग
हरदी- मिरचा पिस ले
कुटले कोदो - कुटकी चाऊंर
फेर उहू दिन ह गवागे
ढेंकी ह जाने कहां नदागे
आज के मनुख ऐला भुलागे
जम्मो जिनिस ह मसीन म कुटा-पिसागे
रचनाकार- सुखन जोगी
ग्राम- डोड़की, पोस्ट- बिल्हा
जिला- बिलासपुर (छ.ग.)

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