शनिवार, 9 जुलाई 2016

पागा कलगी-13/14/बी के चतुर्वेदी

सघ्घर माटी ; चंदन माटी सवला ए बरदान रे
महके संझा बिहन्ना अंगना माटी मोर मीतान रे "
जनम पायें दाई के कोरा तोर अचरा रेंगत नांचे रे
गली खोर दुवरा मा खेले अमरीत पानी चांखे रे
तोर माटी मोर माटी सब माटी हे समान. रे "
रवंद के धुर्रा नदिया तरीया पढ़त गुनत नहवाये रे
चिला अंगाकर बासी रोटी मेछरात मुंहु खवाये रे
हरेली के गेड़ी पोरा के बैला चले ठेठरी जुबान रे "
मेला मेड़ई राउत नचाई ढेलुवा खूब . झुलाये रे
उखरा चना मुर्रा लाई बतासा कुसियार दे चहकाय रे
टेही मारे गरुवा ढिलाये ठुढ़ियावत. दइहान रे
चारो कोती हरियर हरिचर खेती खार देहे सजाये रे
बहिंगा कांवर सींकहर डोरी धान कलगी लहराये रे
ए माटी हे धान कटोरा करे सबला परबत. दान. रे "
अब माटी के चीथा पुदगी परीया गउचर गये नंदाये रे
जखर लाठी तेकर भैंसी गांव सहर मा हुकनम चलाये रे
अँते ले आंइन लोटा खाली अव बरकस बनगे सुजान रे "
कइसन बिकास के हाना काट जंगल घर महल बनाये रे
कारखाना के जहर उगलाई तभो कोनो नइ पछताये रे
छत्तीसगढ़ मा छागे बीमारी अउ कइसे बंचही परान. रे "
माटी मोर मीतान ************
बी के चतुर्वेदी

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